उधार

वो कलम तो याद होगी,
जो हमने खरीदी थी कभी हिस्सेदारी में,
हमारी वह कलम मुझे कुछ ज्यादा ही प्यारी थी,
शायद इसलिए भी, क्योंकि वह आधी तुम्हारी थी |
मुझे अभी भी याद है,
कितनी कहानियाँ लिखी थी हमने साथ में |

फिर अचानक एक दिन यह जान पड़ा,
कि हिस्सेदारी का तुम्हारा शौक तो पुराना है |
और किसी लम्बी हिस्सेदारी के सिलसिले में,
तुम्हें कहीं और ही जाना है |
उस रोज़ कितनी उपेक्षा थी तुम्हारी नज़रों में,
जब फेंका था उस कलम को मेरी ओर तुमने,
जब टूटी थी कलम मेरे सीने से टकराकर,
और जब स्याही,
फैल रही थी मेरे कपडों पर,
उतर रही थी मेरे दिल में,
बरस रही थी मेरी आँखों से |

उन टुकडों को रखा है मैंने अब भी संभाल कर,
हाँ, अब उनपर तुम्हारा अधिकार नही रहा,
क्योंकि तुमने तो उन्हें हमेशा के लिए फ़ेंक दिया था न ?
मेरी यादें अछूत तो नहीं थी,
फिर क्या जरूरी था मुझे भूलना ?
अब अधिकार नही है तो याद न ही करना,
और कभी ये चेहरा होठों पे मुस्कान दे जाए तो समझना,
कि वो तुम्हारी जिंदगी पर मेरा उधार रहा,
ऐसा उधार जो तुमसे कभी चुक न सकेगा |