यादें

यूँ ही किताबों में कोई पुराना पन्ना पा गया।
क्या कहूं कि दूर ख़ुद से आज कितना आ गया।

सदियों की धूल जाने कैसे एक पल में गल गई,
और बिसरी यादों में, मैं कितना गहरा समा गया।

ख़ुद के ही लिखे ख़तों को सौ सौ दफ़ा पढ़ता रहा,
हर बार कोई लफ़्ज नया, कुछ ख़्वाब नया सजता गया।

जिक्र कितने मोड़ों का है, कितनी गलियां गुजर गईं,
जाने कितने चौराहों पे, मैं सीधा चलता गया।

हर रात ने मुझको छला, औ' दिन भी कुछ आगे चला,
कुछ बात थी जो मुझमे मैं घटता रहा, मिटता गया।

लो आज आँखें नम हुईं, लो आज जख्म हरा हुआ,
सालों तलक जो यादों से छुपता रहा, भरता गया।

उन बेवजह मुस्कानों से कब से न था कोई वास्ता,
अश्कों को लेकर आँखों में आज मैं मुस्का गया।