इश्क का जिंदगी पे कुछ अहसान देखिये,
शादाबगी को और थोड़ा पहचान देखिये।
पढ़ पढ़ कर आयतों को क्या सीखेंगे इबादत,
कभी किसी काफिर में खुदा जान देखिये।
मान लें वादा-खिलाफी वो हँस हँस के बार बार,
लेकर उनकी जुबां की कसमे उनका मान देखिये।
होठो की थोडी सी मनमानी लहराने दें उनके बदन पर,
बेनियाजी बातों में उनकी और थोड़ा ईमान देखिये।
दिन भर तरन्नुम-ऐ-तसव्वुर, औ दास्तां-ऐ-मोहब्बत ख्वाब में,
सुबह जो उठिए तो होठों पे उनका नाम देखिये।
आंखों को चुराने के मौसम हज़ार आयेंगे,
निगाहें लगा कर कभी रूह थाम देखिये।
शादाबगी को और थोड़ा पहचान देखिये।
पढ़ पढ़ कर आयतों को क्या सीखेंगे इबादत,
कभी किसी काफिर में खुदा जान देखिये।
मान लें वादा-खिलाफी वो हँस हँस के बार बार,
लेकर उनकी जुबां की कसमे उनका मान देखिये।
होठो की थोडी सी मनमानी लहराने दें उनके बदन पर,
बेनियाजी बातों में उनकी और थोड़ा ईमान देखिये।
दिन भर तरन्नुम-ऐ-तसव्वुर, औ दास्तां-ऐ-मोहब्बत ख्वाब में,
सुबह जो उठिए तो होठों पे उनका नाम देखिये।
आंखों को चुराने के मौसम हज़ार आयेंगे,
निगाहें लगा कर कभी रूह थाम देखिये।
swapnil bhaiya...
ReplyDeleteaapkiu pehli rachna padhi maine. har sher iska umda hai.
"kavi kisi kafir me khuda jan dekhiye"
kafi sashakt khayal ko darshata hai aapki ye pangti.
aapka subhekshu
shashi sagar
kya baba... ISHQ ko less serious bata diye :| ...haan shayad aapke liye ahem ahem :P... i always knew u can create wonders if u share ur thoughts, n see here's the result :)
ReplyDeleteAwesome
ReplyDelete