पुरुरवा का प्रेम-प्रस्ताव

मर्त्य मानव के विजय का तूर्य हूँ मैं,
उर्वशी! अपने समय का सूर्य हूँ मैं |
अंध तम के भाल पर पावक जलाता हूँ,
बादलों के शीश पर स्यंदन चलाता हूँ |

पर जाने बात क्या है?.....

इन्द्र का आयुध पुरुष जो झेल सकता है,
सिंह से बाहें मिला कर खेल सकता है,
फूल के आगे वही असहाय हो जाता,
शक्ति के रहते हुए निरूपाय हो जाता,

बिद्ध हो जाता सहज बंकिम नयन के बाण से,
जीत लेती रूपसी नारी उसे मुस्कान से |

चाहिए देवत्व, पर इस आग को धर दूं कहाँ पर?
कामनाओं को विसर्जित व्योम में कर दूं कहाँ पर?
वह्नी का बेचैन यह रसकोष बोलो कौन लेगा?
आग के बदले मुझे संतोष बोलो कौन देगा?

मैं तुम्हारे बाणों का बिंधा हुआ खग,
वक्ष पर धर शीश मरना चाहता हूँ |
मैं तुम्हारे हाथों का लीला कमल हूँ,
प्राण के सर में उतरना चाहता हूँ |

इन प्रफुल्लित प्राण पुष्पों में मुझे शाश्वत शरण दो,
गंध के इस लोक से बाहर जाना चाहता हूँ |
मैं तुम्हारे रक्त के कण में समाकर,
प्रार्थना के गीत गाना चाहता हूँ |

(राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर, "उर्वशी" में)

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martya maanav ke vijay ka toorya hoon main,
urvashi! apne samay ka soorya hoon main |
andh tam ke bhaal par paavak jalaata hoon,
baadalon ke sheesh par syandan chalaata hoon |

par na jaane baat kya hai?.....

indra ka aayudh purush jo jhel sakta hai,
sinh se baahen mila kar khel saktaa hai,
phool ke aage wahi asahaay ho jaata,
shakti ke rehte huye niroopaay ho jaata,

biddh ho jaata sahaj bankim nayan ke baan se,
jeet leti roopasi naari use muskaan se |

chaahiye devatva, par ees aag ko dhar doon kahan par?
kaamnaaon ko visarjit vyom mein kar doon kahan par?
vahni kaa bechain yeh raskosh bolo koun lega?
aag ke badle mujhe santosh bolo koun dega?

main tumhaare baanon ka bindha hua khag,
vaksh par dhar sheesh marna chaahata hoon.
main tumhaare haathon ka leela kamal hoon,
praan ke sar men utarna chaahta hoon.

in praphullit praan pushpon mein mujhe shaashwat sharan do,
gandh ke ees lok se baahar na jaana chaahta hoon.
main tumhaare rakt ke kan mein samaakar,
praarthnaa ke geet gaana chaahtaa hoon.

(Rashtrakavi Ramdhari Singh Dinakar, in "Urvashi")

15 comments:

  1. excellent line/////
    बिद्ध हो जाता सहज बंकिम नयन के बाण से,
    जीत लेती रूपसी नारी उसे मुस्कान से |

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  2. Beautiufl piece of poem

    http://www.yogasandesh.com/

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  3. where can we find detailed explanation of these poems??

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  4. इन्द्र का आयुध पुरूष जो झेल सकता है,
    सिंह से बांहे मिला कर खेल सकता है,
    फूल के आगे वही असहाय हो जाता है,
    शक्ति के रहते हुए निरुपाय हो जाता है,
    ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
    -----ऐसा प्रेम जो सर्व सामर्थवान को भी
    अपने रंग में रंग जाने के लिए इस तरह विवश कर
    देता है जैसे विषैले से विषैले साँप भी बिन के धुन के आगे विवश हो जाता है...वाह री उर्वशी--तेरा क्या कहना???

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  5. इन्द्र का आयुध पुरूष जो झेल सकता है,
    सिंह से बांहे मिला कर खेल सकता है,
    फूल के आगे वही असहाय हो जाता है,
    शक्ति के रहते हुए निरुपाय हो जाता है,
    ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
    -----ऐसा प्रेम जो सर्व सामर्थवान को भी
    अपने रंग में रंग जाने के लिए इस तरह विवश कर
    देता है जैसे विषैले से विषैले साँप भी बिन के धुन के आगे विवश हो जाता है...वाह री उर्वशी--तेरा क्या कहना???

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  6. इन्द्र का आयुध पुरूष जो झेल सकता है,
    सिंह से बांहे मिला कर खेल सकता है,
    फूल के आगे वही असहाय हो जाता है,
    शक्ति के रहते हुए निरुपाय हो जाता है,

    बिद्ध हो जाता सहज बंकिम नयन के बाण से,
    जीत लेती रूपसी नारी उसे मुस्कान से |

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  7. रामधारी सिंह दिनकर जी की इन रचनाओं का शुक्रगुजार हूं ऐसी रचनाओं को बार बार पढने का दिल करता है

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  9. अद्भुत अप्रतिम उत्कृष्ट सृजन
    सादर नमन।

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  10. कितनी सुन्दर पंक्तिया, 🙏धन्यवाद.

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  11. अप्रतीम

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